पार्थ ! यदि तू ईश्वर की उपासना करना चाहता है तो अपने कर्मों के द्वारा ही कर ! समर्पित कर दे अपने समस्त कर्म ईश्वर को ! जल मे रह कर भी जैसे कमल पत्र जल से ऊपर रहता है , उसी प्रकार कर्म करते हुए भी तू कमल पत्र की तरह कर्म से ऊपर उठा रह ......!
मै ही महाकाल हूँ अर्जुन ? जो आज दिखाई देता है , वह कल ना रहेगा !
इसलिए तू उठ , खड़ा हो ! समय को पहचान और यशस्वी बन !
पार्थ ! मोह ,ममता ,संकोच ,डर सब त्याग दे ! यदि त्याग ना सके तो अपनी ये दोष दुर्बलताएँ मुझे सोंप दे !
आज तेरे सामने उज्जवल भविष्य का द्वार खुला हुआ है ! भाग्यवान मनुष्य ही ऐसा स्वर्ण अवसर पाते हैं ! और तू स्वर्ग द्वार पर पहुँच कर भी पलायन करना चाहता है ?
सोभाग्यशाली वीर ! उठ खड़ा हो , क्योंकि आज आत्मिक उन्नति भी तेरी मुट्ठी मे है और भोतिक प्रगति भी तेरी मुट्ठी मे है ,यश भी तेरी मुट्ठी मे है ! उठा ले लाभ इस पवित्र अवसर का !
मै ही महाकाल हूँ अर्जुन ? जो आज दिखाई देता है , वह कल ना रहेगा !
इसलिए तू उठ , खड़ा हो ! समय को पहचान और यशस्वी बन !
पार्थ ! मोह ,ममता ,संकोच ,डर सब त्याग दे ! यदि त्याग ना सके तो अपनी ये दोष दुर्बलताएँ मुझे सोंप दे !
आज तेरे सामने उज्जवल भविष्य का द्वार खुला हुआ है ! भाग्यवान मनुष्य ही ऐसा स्वर्ण अवसर पाते हैं ! और तू स्वर्ग द्वार पर पहुँच कर भी पलायन करना चाहता है ?
सोभाग्यशाली वीर ! उठ खड़ा हो , क्योंकि आज आत्मिक उन्नति भी तेरी मुट्ठी मे है और भोतिक प्रगति भी तेरी मुट्ठी मे है ,यश भी तेरी मुट्ठी मे है ! उठा ले लाभ इस पवित्र अवसर का !
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